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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

सबसे बड़ा साधक

जीवन में अनेक प्रश्न ऐसे आते हैं जिनका उत्तर कहीं नहीं मिलता है । जैसे सबसे बड़ी साधना क्या है ? सबसे बड़ा साधक कौन है ? ऐसे प्रश्नों के उत्तर किताबों में नहीं मिलते हैं , किस्से कहानियों में मिलते हैं । आओ , आज इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए एक कहानी सुनते हैं ।

भारत के अनेक राजाओं में से सबसे विद्वान राजा थे राजा जनक । माता सीता के पिता । एक बार जनकपुरी में एक पहुंचे हुए साधु आए । अपने तप , ज्ञान, साधना और व्यवहार के कारण उनकी कीर्ति राज्य में चारों ओर फैल गई थी । जनकपुरी में बच्चे बच्चे की जुबान पर साधु महाराज की विद्वता, सद्वव्यवहार के चर्चे थे । क्या औरतें और क्या मर्द , सब उस साधु के गुणगान गाते थकते नहीं थे । 

राजा जनक के दरबार में भी उस साधु की कीर्ति पहुंची । सभी दरबारी मुक्त कंठ से साधु की प्रशंसा करने लगे । कहने लगे " ऐसा साधु ना कभी देखा और ना ही सुना ।  शायद आगे भी कभी देख पाएंगे या नहीं, पता नहीं । इतना शालीन , इतना विनम्र , इतना ज्ञानी , इतना तपस्वी , इतना चरित्रवान साधु हमने आज तक कभी देखा नहीं है, महाराज । साक्षात ब्रह्मा, विष्णु, शिव का अवतार लग रहे हैं साधु महाराज । महाराज , आप भी उनका दर्शन लाभ करेंगे तो आपके भी क्लेश कुछ तो कम होंगे " । 

राजा जनक को दरबारियों की राय पसंद आ गई । चलने से पहले साधु महाराज को सूचित करने के लिए महामंत्री ने दूत को भेजने के लिए बुलाया तो महाराजा जनक ने उन्हे मना कर दिया । सामान्य इंसान की तरह चलने की बात कही उन्होंने । महामंत्री ने रथ तैयार कर लगवाने के आदेश दिए पर महाराज जनक ने इसके लिए भी मना कर दिया और पैदल चलने की इच्छा व्यक्त की । 

महाराज जनक तैयार होने के लिए अपने कक्ष में चले गए । जब वापस लौटे तो बिल्कुल साधारण वस्त्र धारण किए हुए थे । अब महामंत्री से रहा नहीं गया तो बोल उठे " महाराज , ये क्या अनर्थ कर रहे हैं ? आपने दूत को सूचना देने के लिए भी मना कर दिया । रथ के लिए भी मना कर दिया । और तो और अब वस्त्र भी आमजन जैसे ? ये क्या माजरा है महाराज " ? 

राजा जनक ने बड़े ही नम्र स्वर में कहा " महामंत्री जी , वो साधु महात्मा हैं । उनका जीवन जगत के कल्याण के लिए है । अपना कुछ नहीं है उनका , जो है सब ईश्वर को समर्पित कर दिया है उन्होंने । अब तो वे समाज सेवा ही कर रहे हैं । जो व्यक्ति देश और समाज के लिए जीता है वह सबसे महान होता है । "सादा जीवन उच्च विचार" ही ध्येय वाक्य है उनका । ऐसे महात्मा के समक्ष राजसी प्रर्दशन करना उनका अनादर करने जैसा है । हम तो केवल उनके दर्शन एक भक्त की तरह करना चाहते हैं । इसलिए इसी तरह जाना चाहिए एक भक्त को अपने भगवान के पास" । 

महाराज जनक की बात काटने का साहस किसी में नहीं था । सब कहने लगे " जैसी महाराज की इच्छा " । सब लोग महाराज जनक के साथ साथ पैदल चलने लगे । थोड़ी देर में वे साधु के आश्रम में पहुंचे । राजा जनक ने अपने सभी दरबारियों को मना कर दिया था कि वे साधु को उनके बारे में नहीं बतायें कि वे राजा जनक हैं । 

राजा जनक साधु को प्रणाम कर वहीं नीचे धरती पर बैठ गए । दरबारी भी आस पास बैठ गए । राजा जनक साधु से कुछ बातें करने लगे । उन्हें अपनी कुछ शंकाएं याद आ गयीं थी जिनका समाधान मिल नहीं रहा था । राजा जनक ने अपनी वे सभी शंकाऐं साधु महाराज के समक्ष रखीं जिनका साधु महाराज ने भली प्रकार से जवाब दिया, जिससे राजा जनक पूर्ण संतुष्ट नजर आये । लगभग एक घंटा व्यतीत करने के बाद राजा जनक ने जाने की अनुमति मांगी । तब साधु महाराज जनक के सामने दण्डवत लेट गए और विनती कर कहने लगे 

" हे महात्मन राजा जनक , हे संसार के सबसे बड़े साधक, एक साधु का प्रणाम स्वीकार करो महाराज " 

राजा जनक और समस्त दरबारी एकदम से चौंके । राजा जनक ने अपने कदम पीछे खींच लिए । राजा जनक ने उन्हें उठाया और साधु के सम्मुख हाथ जोड़कर कहने लगे 

" हे साधु श्रेष्ठ ! आप मुझको नर्कवासी क्यों बना रहे हैं ? आप तो इतने बड़े साधु हैं । इतने विनम्र,  इतने विद्वान,  इतने मनीषी, इतने तपस्वी इतने त्यागी हैं कि आपसे अधिक महान साधु आज त्रैलोक्य में कोई नहीं है । आप जैसे प्रतिष्ठित साधु को यह शोभा नहीं देता है । आप तो महा ज्ञानी , महा विद्वान , महा तपस्वी हैं । आप तो साधना में लीन हैं , साधक हैं । मेरा कर्तव्य बनता है आपको प्रणाम करने का । और आप मुझे ही साष्टांग प्रणाम करके मुझे पाप का भागी बना रहे हैं । आप ऐसा क्यों कर रहे हैं साधु महाराज ? क्या मुझसे कोई अपराध हुआ है " ? 

तब साधु महाराज ने भाव विह्वल होकर कहा " हे राजन श्रेष्ठ ! हम तो साधु हैं । हमारा क्या है ? हम तो सन्यासी हैं । हमने मोह माया का त्याग कर रखा है । हमारी कोई इच्छा नहीं । हमारी कोई आवश्यकताएं भी नहीं । मानव कल्याण ही हमारा उद्देश्य है । इसके लिए हम लोग देशाटन करके जगह जगह सत्संग करते रहते हैं । लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने का उपदेश देते रहते हैं । हमारे खाने पीने की उत्तम से उत्तम व्यवस्था आपने कर रखी है । भजन , सत्संग के अलावा और कोई काम नहीं है हमारे पास । इसलिए भगवान का भजन करते रहते हैं । स्वाध्याय , तप , साधना करते रहते हैं । ये हमारा नित्य का कार्य है महाराज  । पर ये कोई साधना थोड़ी है राजन । साधना तो आप कर रहे हैं । आप राजा हैं फिर भी आमजन की तरह वस्त्र धारण करके पैदल पैदल चलकर आ रहे हैं । आप भोले शंकर की तरह तपस्वी हैं । नारायण की तरह प्रजापालक और ब्रह्मा की तरह विद्वान । एक चक्रवर्ती राजा होकर भी इतने विनम्र । अहंकार तो तनिक छू भी नही गया है आपको । गृहस्थ धर्म का पालन कर आप अपने परिवार का ध्यान रख रहे हैं । राजा होकर प्रजा की सुख सुविधाओं का पूर्ण ध्यान रख रहे हैं । ज्ञान में आप ब्रह्मा जी के बराबर हैं । आपसे श्रेष्ठ साधक कोई नहीं है इस धरा पर । रूखी सूखी खाना और प्रभु के गुण गाना ये हमारा तो काम है लेकिन दीन हीनों की सेवा का काम तो आप ही कर रहे हो राजन । इसलिए आपसे बड़ा साधक और कौन हो सकता है ? गृहस्थ धर्म सबसे बड़ी साधना है । और एक राजा के रूप में प्रजा की सेवा करना उससे भी बड़ी साधना है । इसलिए हे राजन ! आपकी साधना तो अद्भुत है । अत: मुझे प्रणाम करने का अवसर तो मिलना ही चाहिए । मुझे इस लाभ से वंचित मत कीजिए महाराज" ।

यह दृश्य देखकर सभी लोग दंग रह गए । समझ में नहीं आ रहा था कि कौन बड़ा साधक है ? राजा जनक या साधु महाराज? जब इतने बड़े साधु महाराज राजा जनक को प्रणाम कर रहे हैं तो जाहिर है कि महाराज जनक ही सबसे बड़े साधक होंगे । सब लोग महाराज जनक को प्रणाम कर उनकी जय जयकार करने लगे ।

गृहस्थ जीवन जीना और परिवार को खुश रखना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन जो भी व्यक्ति ऐसा करता है वह सबसे बड़ा साधक है । यही सबसे बड़ी साधना है । आज की शिक्षा भी यही है ।


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5 Comments

दशला माथुर

20-Sep-2022 11:26 AM

Nice post

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shweta soni

19-Sep-2022 11:59 PM

बेहद सुंदर रचना 👌👌

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Rahman

14-Jul-2022 10:29 PM

Osm

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